निबन्ध | Nibandh in Hindi
निबन्ध-रचना-
आज हम यह इस पोस्ट में निबन्ध-रचना के बारे में पढ़ेंगे। इस पेज पर निबन्ध विषय में, किसी विषय पर एक उत्तम निबन्ध कैसे लिखें? को समझने का प्रयास करेंगे। इसके अतिरिक्त निबन्ध किसे कहते हैं? निबन्ध का अर्थ क्या है? निबन्ध की परिभाषा, प्रकार एवं अंग आदि के बारे में भी सीखेंगे।
निबन्ध का अर्थ-
निबंध शब्द दो शब्दों ‘नि'+'बंध’ से बना है, जिसका अर्थ है बेहतर ढंग से बँधा हुआ।
निबन्ध में अच्छी भाषा ही निबंध की शक्ति होती है। निबन्ध की भाषा सदैव विषय के अनुकूल होनी चाहिए। एक अच्छे निबंधकार में सदैव अपने भावों, विचारों तथा अनुभवों को प्रभावशाली दंग से व्यक्त करने की कला पायो जाती है।
अर्थात-
"थोड़े किन्तु चुने हुए शब्दों में किसी विषय पर अपने अच्छी तरह से विचार प्रकट करने के प्रयत्न को निबन्ध कहते हैं।"
निबंध की परिभाषा-
"निबंध, लेखक के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाली ललित गद्य-रचना है।"
विकिमीडिया के अनुसार- यह निबंध की सबसे अच्छी परिभाषा मानी गयी है।
विभिन्न आचार्यों के अनुसार निबन्ध की परिभाषाएं-
1. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार निबन्ध की परिभाषा-
"नए युग में जिन नवीन ढंग के निबंधों का प्रचलन हुआ है वे व्यक्ति की स्वाधीन चिन्ता की उपज है।"
2. आचार्य शुक्ल के अनुसार के अनुसार निबन्ध की परिभाषा-
’’यदि गद्य कवियों को कसौटी है, तो निबंध गद्य की।’’
3. पं.श्यामसुंदर दास के अनुसार निबन्ध की परिभाषा-
’’निबंध वह लेख है जिसमें किसी गहन विषय पर विस्तारपूर्वक और पाण्डित्यपूर्व ढंग से विचार किया गया हो।’’
4. बाबू गुलाबराय के अनुसार निबन्ध की परिभाषा-
‘‘निबंध उस गद्य-रचना को कहते हैं, जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छंदता, सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया हो।’’
5. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार निबन्ध की परिभाषा-
"निबंध लेखक अपने मन की प्रवृत्ति के अनुसार स्वच्छंद गति से इधर-उधर फूटी हुई सूत्र शाखाओं पर विचरता चलता है। यही उसकी अर्थ सम्बन्धी व्यक्तिगत विशेषता है। अर्थ-संबंध-सूत्रों की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ ही भिन्न-भिन्न लेखकों के दृष्टि-पथ को निर्दिष्ट करती हैं। एक ही बात को लेकर किसी का मन किसी सम्बन्ध-सूत्र पर दौड़ता है, किसी का किसी पर। इसी का नाम है एक ही बात को भिन्न दृष्टियों से देखना। व्यक्तिगत विशेषता का मूल आधार यही है।"
निबन्ध के विषय-
निबन्ध के लिए किसी भी विषय को चुना जा सकता है। निबन्ध के विषयों की कोई निश्चित सीमा नहीं होती, चींटी से लेकर स्पुतनिक तक किसी भी विषय पर निबन्ध लिखे जा सकते हैं।
निबन्ध का आरम्भ-
निबन्ध का आरम्भ ऐसे सुन्दर ढंग से होना चाहिए कि निबन्ध पढ़नेवाले की उत्सुकता आरम्भ में ही बढ़ जाए और पाठक उसे पूरा पढ़ने को बाध्य हो जाए। मौलिकता,मनोरंजकता तथा विचारपूर्णता निबन्ध के आवश्यक गुण हैं।
निबन्ध-लेखन का साधन-
साधन-पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन निबन्ध-लेखन का सर्वोत्तम साधन है। जितना अधिक अध्ययन किया जाएगा, उतना ही विषयों का विस्तृत ज्ञान प्राप्त होगा। इससे निबन्ध-लेखन में अधिक कठिनाई नहीं रह जाती।
निबन्ध के अंग-
निबन्ध के चार प्रमुख अंग हैं-
(१) शीर्षक
(२) प्रस्तावना,
(३) प्रसार
(४) उपसंहार
(१) शीर्षक
जिस विषय पर विचार प्रकट करना होता है उसे निबंध का शीर्षक कहते है। किसी भी निबंध का शीर्षक रोचक, आकर्षक, भावपूर्ण एवं सरल होना चाहिए।
(२) प्रस्तावना
प्रस्तावना में निबन्ध की भूमिका रहती है। इसमें विषय का परिचय दिया जाता है। इस स्थल पर लेखक यह बता देता है कि वह विषय के सम्बन्ध में क्या कहना चाहता है और वह किस प्रकार से अथवा किस ढंग से उसे कहेगा।
(३) प्रसार
इसमें निबन्ध का कलेवर या शरीर रहता है । यह निबन्ध का सबसे विस्तृत तथा महत्त्वपूर्ण अंश होता है। इसमें निबन्ध-लेखक को विषय के सम्बन्ध में अपना पूरा ज्ञान संक्षेप में,संयत तथा मनोरंजक शैली में उपस्थित करना होता है।
(४) उपसंहार
निबन्ध का अन्तिम भाग उपसंहार है। इसमें निबन्ध के आरम्भ से अन्त तक का संक्षिप्त विवरण दिया जाता है। इस स्थल पर निबन्ध का सिंहावलोकन-सा किया जाता है।
निबन्ध के प्रकार
प्रमुख रूप से निबन्ध तीन प्रकार के होते हैं-
(१) वर्णनात्मक,
(२) आख्यानात्मक
(३)विचारात्मक।
(१) वर्णनात्मक निबन्ध
वर्णनात्मक निबन्ध में किसी वस्तु,पदार्थ,स्थान, यात्रा,घटना या दृश्य आदि का वर्णन किया जाता है । इसमें प्रमाण आदि नहीं दिए जाते,केवल वर्ण्य-विषय का यथार्थ चित्रण किया जाता है।
(२) आख्यानात्मक निबन्ध
इस प्रकार का निबन्ध किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के जीवन को आधार बनाकर लिखा जाता है । आख्यानात्मक निबन्ध में व्यक्ति का शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक परिचय ही नहीं दिया जाता; वरन् उसके व्यक्तित्व पर भी प्रकाश डाला जाता है और उसके गुण-दोषों का संक्षिप्त विवेचन भी दिया जाता है।
(३) विचारात्मक निबन्ध
विचारात्मक निबन्ध में किसी विचार अथवा भाव को लेकर निबन्ध की रचना की जाती है। दर्शन, अर्थशास्त्र, राजनीति, धर्म, संस्कृति, सभ्यता, विज्ञान, इतिहास आदि से सम्बन्ध रखनेवाले विषय विचारात्मक निबन्ध के अन्तर्गत आते हैं।
विचारात्मक निबन्ध के भेद
विचारात्मक निबन्ध के दो भेद हैं-
(क) भावनाप्रधान निबन्ध
(ख) तर्कप्रधान निंबन्ध ।
(क) भावनाप्रधान निबन्ध
इस प्रकार के निबन्धों के अन्तर्गत अपने मन की भावनाओं में बहता हुआ भावुक शैली में अपनी बात कहता है। वह अपने भावों को सही मानते हुए, जो कुछ मन में तरंग आए, उसी को अपनी लेखक शब्दावली में व्यक्त कर देता है ।
(ख) तर्कप्रधान निबन्ध-
तर्कप्रधान निबन्ध में विचार को तर्क अथवा युक्ति-प्रमाणों के आधार पर सिद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। कभी-कभी किसी विचार का विश्लेषण या विवेचन भी किया जाता है। इसमें किसी भाव या विचार पर वाद-विवाद भी किया जाता है। इसके अन्तर्गत किसी वस्तु, विषय अथवा रचना की आलोचना की जाती है अथवा आलोचना की प्रत्यालोचना भी की जाती है।
अच्छे निबंध की विशेषताएं-
एक अच्छे निबंध में निन्मलिखित विशेषताएं निहित होती हैं -
(१) एक अच्छे निबंध में संक्षिप्तता, एकसूत्रता तथा पूर्णता आदि का गुण विद्यमान होता है।
(२) निबंध लेखक में पुनरुक्ति से बचना क अच्छे निबंध की विशेषता होती है। निबंध लेखक में अपने उद्देश्य (बात) को तर्कपूर्ण ढंग से प्रकट करना चाहिए।
(३) किसी भी तर्क की पुष्टि करने के लिए यदि सम्भव हो तो आंकड़े, उद्धरण आदि के द्वारा स्पष्टीकरण किया जाना चाहिए।
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