क्रिया किसे कहते हैं? क्रिया के भेद उदाहरण सहित विस्तार में बताइए। हिंदी व्याकरण
क्रिया | क्रिया की परिभाषा | Kriya in Hindi
क्रिया-परिभाषा: "किसी कार्य के करने या होने का बोध कराने वाले शब्दों को 'क्रिया' कहते हैं।"
जैसे-
(1) सुरेखा पढ़ती है ।
(2) माली पौधों में पानी डालता है ।
(3) पुस्तक मेज पर रखी है।
(4) पेड़ की डाली टूट गई।
पहले उदाहरण में सुरेखा 'पढ़ने 'का कार्य कर रही है।
दूसरे उदाहरण में पानी 'डालने 'का कार्य हो रहा है,
तीसरे में 'रखने 'का और चौथे में डाली के टूटने का कार्य हो रहा है। अतः ये चारों पद क्रिया के उदाहरण हैं।
क्रिया वाक्य का महत्वपूर्ण अंग है और यह प्रत्येक वाक्य में अनिवार्य रूप से विद्यमान रहती है। जिन वाक्यों में क्रिया प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देती वहां उसकी स्थिति अप्रत्यक्ष होती है ।
जैसे-
'बहुत अच्छा।'
इस वाक्य में क्रिया अप्रत्यक्ष है; इसका पूरा रूप होगा ' बहुत अच्छा किया।' या ' बहुत अच्छा हुआ।'
क्रिया शब्द विकारी होते हैं। कर्ता के लिंग, वचन, काल और कारक के अनुसार इसके रूप में परिवर्तन होता है।
जैसे-
( 1 ) लिंग के कारण विकार
* अरविंद बाजार जाता है।
* रश्मि बाजार जाती है ।
( 2 ) वचन के कारण विकार
* घोड़ा दौड़ रहा है।
* घोड़े दौड़ रहे हैं ।
( 3 ) काल के कारण विकार
* मैं विद्यालय जा रही हूं ।
* मैं कल विद्यालय जाऊंगी ।
( 4 ) कारक के कारण विकार
* मोहन पुस्तक पढ़ता है।
* मोहन के द्वारा पुस्तक पढ़ी जाती है।
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है कि लिंग, वचन, काल और कारक क्रिया के रूप - रचना पर प्रभाव डालते हैं।
' हैं ' क्रिया पद का प्रयोग बहुवचन क्रिया के लिए ही किया जाता है, परंतु बड़े सम्मानित कर्ता के साथ आदर सूचक रूप में भी ' हैं ' का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
1. दादा जी सो रहे हैं।
2. माताजी आज दिल्ली गई हैं ।
3. प्रधानमंत्री जी आज भाषण दे रहे हैं ।
धातु:-
क्रिया के मूल अंश को 'धातु' कहते हैं।
जैसे-
लिख, देख , काट, हंस,सुन ,बोल, पढ़,खेल,चल आदि।
धातु के पीछे "ना" जोड़ने से लिखना, देखना, काटना, हंसना, सुनना, बोलना, पढ़ना, खेलना, चलना आदि क्रिया के सामान्य रूप बन जाते हैं। शब्दोंकोशों में क्रियाओं के ये सामान्य रूप ही प्राप्त होते हैं ।
प्रत्येक क्रिया में दो बातें होती हैं-
( 1 ) व्यापार (कार्य) और ( 2 ) फल (परिणाम )
क्रिया के भेद:-
क्रिया के 3 प्रमुख भेद / प्रकार होते हैं -
[1] व्यापार और फल के आधार पर क्रिया के भेद
[2] अर्थ की दृष्टि से क्रिया के भेद
[3] संरचना की दृष्टि से क्रिया के भेद
[1] व्यापार और फल के आधार पर क्रिया के भेद :-
व्यापार और फल के आधार पर क्रिया के दो (2) भेद किए गए हैं -
( क ) सकर्मक क्रिया
( ख ) अकर्मक क्रिया
(क) सकर्मक क्रिया:-
सकर्मक का शाब्दिक अर्थ है,' कर्म के साथ' ।
जिन क्रियाओं का फल कर्म पर पड़ता है ,उन्हें सकर्मक क्रियाएं कहते हैं।
जैसे-
1. दादा जी अखबार पढ़ते हैं।
2. श्री कृष्ण ने कंस को मारा ।
3. सुनीता पत्र लिखेगी ।
4. मोहन ढोलक बजाता है ।
उपर्युक्त वाक्यों में अखबार ,कंस, पत्र और ढोलक कर्म हैं। पढ़ने ,मारने ,लिखने और बजाने का कार्य तो कोई और कर रहा है पर फल इन पर पड रहा है । अंत:ये चारों क्रियाएं सकर्मक है ।
सकर्मक क्रिया के भेद:-
सकर्मक क्रिया के दो भेद होते हैं:-
(1) एककर्मक क्रिया:-
जिस क्रिया का केवल एक ही कर्म होता है ,उसे एक कर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे-
1.रेखा महाभारत पढ़ती है ।
2. नरेश पेंसिल से लिखता है।
3. दादी जी कहानी सुना रही हैं।
उपयुक्त वाक्यों में 'पढ़ती है ' , 'लिखता है 'और 'सुना रही है ' क्रियाओं के क्रमशः,' महाभारत' ' पेंसिल' और 'कहानी' एक ही कर्म हैं । इसलिए ये एक कर्मक क्रियाएं है।
(2) द्विकर्मक क्रिया:-
जिस क्रिया के दो कर्म होते हैं उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं ।
जैसे-
1. संजय ने अध्यापक को पुस्तक दी।
2. रीना ने बिल्ली को दूध पिलाया ।
3. अजीत पेन से पत्र लिखता है ।
उपर्युक्त वाक्यों में 'दी' क्रिया के 'अध्यापक 'और 'पुस्तक'; 'पिलाया' क्रिया के' बिल्ली 'और 'दूध' ; 'लिखता 'है क्रिया के 'पेन' और ' पत्र ' - ये दो -दो कर्म है । इसलिए ये द्विकर्मक क्रियाएं हैं।
(ख) अकर्मक क्रिया:-
अकर्मक का शाब्दिक अर्थ है ' कर्म रहित'।
जिन क्रियाओं के व्यापार और फल दोनों कर्ता में ही पाए जाएं,उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं। इन क्रियाओं में कर्म नहीं होता इसलिए ये अकर्मक क्रियाएं कहलाती है।
जैसे-
1. पक्षी उड़ता है।
2. अमित हंसता है।
3 पतंग. उड़ रहा है।
4. महिमा गा रही है।
उपर्युक्त वाक्यों में ' उड़ता है';' हंसता है '; ' उड़ रहा है' और' गा रही है' - अकर्मक क्रियाएं है क्योंकि उनका व्यापार और फल' पक्षी ';'अमित'; ' पतंग 'और'महिमा 'पर ही पड़ता है।
[2] अर्थ की दृष्टि से क्रिया के भेद :-
अर्थ की पूर्णता की दृष्टि से क्रिया के दो भेद माने जाते हैं -
(क) पूर्ण क्रिया
(ख)अपूर्ण क्रिया
इन दोनों का संबंध अकर्मक और सकर्मक क्रिया के साथ हैं।
(क) पूर्ण क्रिया:-
प्राय: सभी अकर्मक क्रियाएं पूर्ण क्रियाए हैं, क्योंकि ये अर्थ की पूर्णता के लिए कर्म आदि अन्य शब्दों पर आधारित नहीं होतीं। इनका अर्थ अपने आप में पूर्ण होता है ।
जैसे-
1. लड़के खेलते हैं ।
2. किरन रो रही है।
(ख) अपूर्ण क्रिया:-
जिन क्रियाओं का अर्थ अपने आप में पूर्ण नहीं होता,पर अर्थ की पूर्णता के लिए जिन्हें बाहरी शब्दों पर आधारित होना पड़ता है, वे अपूर्ण क्रियाएं हैं।
सकर्मक क्रियाएं प्रायः अपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इन क्रियाओं में हमेशा कर्म की अपेक्षा होती है।
जैसे -
"मैंने पिया।"
उपर्युक्त वाक्य में क्या पिया? यह स्पष्ट नहीं होता ।
इसे स्पष्ट करने के लिए कर्म की आवश्यकता रहती है। इसलिए यह अपूर्ण क्रिया है।
[3] संरचना की दृष्टि से क्रिया के भेद:-
संरचना की दृष्टि से क्रिया के निम्नलिखित छ: (6) भेद हैं:-
(क) सामान्य क्रिया
(ख) संयुक्त क्रिया
(ग) प्रेरणार्थक क्रिया
(घ) पूर्वकालिक क्रिया
(ङ) नामधातु क्रिया
(च) कृदंत क्रिया
(क) सामान्य क्रिया:-
जब किसी वाक्य में एक ही क्रिया पद का प्रयोग किया जाए, तो उसे सामान्य क्रिया कहते हैं।
जैसे-
1. वह आगरा गया ।
2. निखिल ने दरवाजा खोला ।
3. सोनल फल लाई ।
4 मैंने पुस्तक पढ़ी ।
5. पिता जी घर आए ।
उपर्युक्त वाक्यों में' गया', 'खोला', 'लाई ', 'पढ़ी',और
'आए 'एक -एक क्रिया प्रयुक्त हुई है। इसलिए ये सामान्य क्रियाएं हैं।
(ख) संयुक्त क्रिया:-
दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनने वाली क्रियाएं संयुक्त क्रियाएं कहलाती हैं।
जैसे-
गिर पड़ना, काम करना, भूल जाना, रो उठना, सो जाना आदि ।
अन्य उदाहरण देखिए-
1. घंटी बज गई।
2. विद्यालय खुल गया।
3. कल राधा चली जाएगी ।
4. मैंने गृह कार्य कर लिया ।
5. अध्यापक पढ़ा रहे हैं ।
उपर्युक्त सभी वाक्यों में एक से अधिक क्रियाएं हैं इसलिए इन्हें संयुक्त क्रियाएं कहते हैं।
संयुक्त क्रिया में पहली क्रिया मुख्य क्रिया होती है जो
मुख्य अर्थ देती है। ये मुख्य क्रियाएं हैं -' बज', 'खुल', 'चली ', 'कर' और 'पढ़ा ' ।
मुख्य क्रिया में जुड़ने वाली क्रिया अपना अर्थ खोकर मुख्य क्रिया में नवीनता और विशेषता उत्पन्न कर देती है, इसलिए इसे" रंजक क्रिया "भी कहते हैं।
रंजक क्रिया मुख्य क्रिया के बाद आती है।
जैसे-
1. गीता आरती कर रही है ।
2. अनिमेष कार्यालय से लौट आया ।
उपर्युक्त वाक्यों में ' रही है ', ' आया ' रंजक क्रियाएं हैं।
अर्थ विशेषता की दृष्टि से संयुक्त क्रिया के भेद:-
अर्थ विशेषता की दृष्टि से संयुक्त क्रिया के नौ (9) भेद होते हैं-
(1) आरंभ बोधक:-
जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के आरंभ होने का बोध हो ,वह आरंभ बोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है ।
इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ 'लगना ' क्रिया के योग से होता है ,किंतु इस स्थिति में मूल क्रिया में कोई परिवर्तन न होकर अन्य क्रिया में लिंग, वचन आदि के अनुरूप परिवर्तन होता है ।
जैसे-
1. भावेश पढ़ने लगा ।
2. संगीता लिखने लगी ।
(2) अवकाश बोधक:-
जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया करने के अवकाश का बोध को ,वह अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है ।इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ 'पाया 'क्रिया के योग से होता है।
जैसे -
1. नरेंद्र कार्यालय नहीं जा पाया ।
2. भावना कल नहीं लिख पायी ।
(3) समाप्ति बोधक:-
जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया की समाप्ति का बोध हो, वह समाप्तिबोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है ।इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ' चुका ' या 'चुकी' क्रिया के योग से होता है।
जैसे-
1. रेखा निबंध लिख चुकी होगी ।
2. सुरेश उत्तर दे चुका है ।
(4) शक्ति बोधक:-
जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के कार्य करने की शक्ति का बोध हो , वह शक्ति बोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है । इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ 'सकना' क्रिया के योग से होता है ।
जैसे -
1. वह दौड़ सकता है ।
2. गीता वीणा बजा सकती है।
(5) आवश्यकता बोघक:-
जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के कर्तव्य का बोध हो, वह आवश्यकता बोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है। इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ 'चाहिए ', 'होना', अथवा 'पड़ा ' के योग से होता है ।
जैसे-
1. मुझे यह कार्य करना चाहिए ।
2. पिताजी को कल देहरादून जाना पड़ा ।
(6) इच्छा बोधक:-
जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया की इच्छा का बोध हो, वह इच्छा बोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है। इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ' चाहना 'के योग से होता है ।जैसे-
1. मैं खेलना चाहता हूं।
2. कुसुम गाना चाहती है।
(7) अनुमति बोधक:-
जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के कार्य करने की अनुमति का बोध हो ,वह अनुमति बोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है । इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ 'देना' क्रिया के योग से होता है ।जैसे:-
1. दिनेश को जाने दो ।
2. उस बच्ची को बोलने दो ।
(8) नित्यता बोधक:-
जिस संयुक्त क्रिया से कार्य करने की नित्यता का बोध हो ,वह नित्यता बोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है। इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ 'करना' अथवा 'होना 'क्रिया के बोध से होता है जैसे-
1. वह पत्र पढ़ता रहा ।
2. गौरव गृहकार्य करता रहा ।
(9) अभ्यास बोधक:-
जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया करने के अभ्यास का बोध हो, वह अभ्यास बोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है । इसका निर्माण सामान्य भूतकाल की क्रिया में 'करना 'क्रिया लगाने से होता है ।जैसे-
1. महेश लेख लिखा करता था ।
2. रीमा हिंदी चलचित्र देखा करती थी।
[ग] प्रेरणार्थक क्रिया:-
जिस क्रिया से यह बोध हो कि कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे से कार्य करवाता है अर्थात् किसी दूसरे को कार्य करने की प्रेरणा देता है उस क्रिया को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे-
करना से करवाना, धोना से धुलवाना
सोना से सुलवाना , चलना से चलवाना आदि।
एक अन्य उदाहरण देखिए-
सोनल वैभव से पत्र लिखवाती है ।
इस वाक्य में सोनल (कर्ता ) स्वयं पत्र न लिखकर वैभव दूसरे व्यक्ति को लिखने की प्रेरणा देती है।अंत: ' लिखवाती ' शब्द प्रेरणार्थक क्रिया है ।
प्रेरणार्थक क्रियाएं दो प्रकार की होती हैं-
(1) प्रथम प्रेरणार्थक
(2) द्वितीय प्रेरणार्थक
(1) प्रथम प्रेरणार्थक:-
जब कर्ता स्वयं कार्य करने में सम्मिलित हो , तब वह प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया होती है। इसमें प्रेरणा रूप स्पष्ट से दिखाई नहीं देता है । जैसे-
1. मोहन बिल्ली को दूध पिलाता है।
2. दादी जी बच्चों को कहानी सुनाती हैं ।
इन दोनों वाक्यों में मोहन और दादी जी स्वयं कार्य कर रहे हैं। अत: इसमें 'पिलाता' और' सुनाती 'प्रथम प्रेरणार्थक क्रियाएं हैं।
(2) द्वितीय प्रेरणार्थक:-
जब कर्ता स्वयं कार्य न कर किसी दूसरे को कार्य करने की प्रेरणा देता है, तब वह द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया होती है । जैसे-
1. अध्यापक छात्र से कविता पढ़वाते हैं ।
2. संगीता नौकर से कपड़े धुलवाती है ।
इन दोनों वाक्यों में अध्यापक और संगीता कर्ता हैं।
कर्ता स्वयं कार्य न करके छात्र और नौकर से कार्य करा रहे हैं। अतः इसमें 'पढ़वाते 'और' धुलवाती' द्वितीय प्रेरणार्थक क्रियाएं हैं।
प्रेरणार्थक क्रिया की रचना के नियम:-
प्रेरणार्थक क्रियाओं के बनाने के कुछ नियम निम्नलिखित हैं-
(1) मूल धातु प्रिया के अंत में 'आ' जोड़ने से प्रथम प्रेरणार्थक और 'वा'जोड़ने से द्वितीय प्रेरणार्थक रूप बनता है।
जैसे-
मूल धातु प्रथम प्रेरणार्थक द्वितीय प्रेरणार्थक
==== ======= ========
दौड़ना दौड़ाना दौड़वाना
गिरना गिराना गिरवाना
लड़ना लड़ाना लड़वाना
(2) एकाक्षरी धातु के अंत में 'ला' और' लवा' लगाते हैं । दीर्घ स्वर को हस्व स्वर कर देते हैं ।
जैसे -
मूल धातु - प्रथम प्रेरणार्थक - द्वितीय प्रेरणार्थक
==== ======= ========
पीना पिलाना पिलवाना
छूना छुलाना छुलवाना
देना दिलाना दिलवाना
(3) कुछ धातुओं के प्रथम प्रेरणार्थक रूप 'ला' अथवा 'आ' लगाने से बनते हैं, परंतु दूसरे प्रेरणार्थक में 'वा' लगाया जाता है।
जैसे-
मूल धातु - प्रथम प्रेरणार्थक - द्वितीय प्रेरणार्थक
==== ======= =====
कहना - कहाना या कहलाना - कहवाना
दिखना - दिखाना या दिखलाना - दिखवाना
आना,जाना ,रहना ,पछताना, टकराना, होना आदि कुछ क्रियाओं के प्रेरणार्थक रूप नहीं बनते ।
[घ] पूर्वकालिक क्रिया:-
किसी क्रिया से पूर्व यदि कोई अन्य क्रिया प्रयुक्त हो, तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है। अर्थात् मुख्य क्रिया से पहले होने वाली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं । जैसे-
1. मोहन खाकर सो गया ।
2. मैं उठकर घूमने गई ।
3. गीता तैयार होकर स्कूल गई ।
4. वह चलकर बाजार गया
5. माधुरी चाय पीकर चली गई ।
उपर्युक्त वाक्यों में क्रमश: 'सो गया' से पहले 'खाकर', 'घूमने गई' से पहले 'उठकर', 'गई' से पहले 'होकर', 'गया' से पहले 'चलकर' और 'चली गई' से पहले 'पीकर' क्रियाओं का प्रयोग हुआ है ।
इसलिए इन वाक्यों में खाकर, उठकर ,होकर, चलकर और पीकर पूर्वकालिक क्रियाएं हैं।
मूल धातु के अंत में 'कर' या 'करके' लगाने से पूर्वकालिक क्रिया बनती है।
जैसे-
पढ-पढ़कर, जाग - जागकर, सो - सोकर
लिख-लिखकर, सोच-सोचकर, खेल-खेलकर
आदि ।
[ङ] नामधातु क्रिया:-
संज्ञा, सर्वनाम ,विशेषण आदि शब्दों से बनने वाली क्रियाएं नामधातु क्रिया कहलाती हैं।
जैसे-
1. कूड़े पर मक्खियां भिनभिना रही हैं।
2. शिवा पहाड़े दोहराने लगा है।
3. साक्षी दरवाजा खटखटा रही है।
4. हमें अच्छी बातों को अपनाना चाहिए।
5. राधिका हर समय अपनी सहेली से बतियाती रहती है।
उपर्युक्त वाक्यों में भिनभिना, दोहराने, खटखटा अपनाना और बतियाती नामधातु क्रियाएं हैं।
नामधातु क्रियाएं चार प्रकार के शब्दों से बनती हैं-
(1) संज्ञा शब्दों से-
संज्ञा शब्द नामधातु क्रियाएं
जूता जुतियाना
दुख दुखाना
खर्च खर्चना
गांठ गांठना
बदल बदलना
रंग रंगना
चक्कर चकराना
शर्मा शर्माना
झूठ झुठलाना
हाथ हथियाना
टक्कर टकराना
(2) सर्वनाम शब्दों से-
अपना - अपनाना
(3) विशेषण शब्दों से-
विशेषण शब्द नामधातु क्रियाएं
लंगड़ा लंगड़ाना
दोहरा दोहराना
ठंड ठंडाना
गरम गरमाना
साठ सठियाना
मोटा मुटाना
चिकना चिकनाना
नरम नरमाना
( 4 ) अनुकरणात्मक शब्दों से -
अनुकरणात्मक शब्द - नामधातु क्रियाएं
थरथर थरथराना
खटखट खटखटाना
हिनहिन हिनहिनाना
बड़बड़ बड़बड़ाना
भिनभिन भिनभिनाना
थपथप थपथपाना
टिमटिम टिमटिमाना
छनछन छनछनाना
टनटन टनटनाना
[च] कृदंत क्रिया:-
जिन क्रियाओं का निर्माण कृत प्रत्ययों के योग से होता है ,वे कृदंत क्रियाएं कहलाती हैं ।
हिंदी में मुख्य रूप से तीन प्रकार की कृदंत क्रियाएं प्रयुक्त होती हैं-
(1) वर्तमानकालिक कृदंत क्रिया:-
लेट + ता = लेटता
हंस + ता = हंसता
जाग + ता = जागता
पल + ता = पलता
भाग +ता = भागता
चल + ता = चलता
दौड़+ ता = दौड़ता
लिख+ता = लिखता
देख +ता = देखता
सोच +ता = सोचता
खेल +ता =खेलता
पढ़ +ता = पढ़ता
(2) भूतकालिक कृदंत क्रिया:-
लेटा + आ = लेटा
हंस + आ = हंसा
जाग + आ = जागा
पल + आ = पला
चल + आ = चला
भाग + आ = भागा
दौड़ + आ = दौड़ा
लिख + आ = लिखा
देख +आ = देखा
सोच + आ = सोचा
खेल + आ = खेला
पढ़ + आ = पढ़ा
(3) पूर्वकालिक कृदंत क्रिया:-
लेट + कर = लेटकर
हंस + कर = हंसकर
जाग + कर = जागकर
पल + कर = पलकर
भाग + कर = भागकर
खेल + कर = खेलकर
देख + कर = देखकर
दौड़ + कर = दौड़कर
चल + कर = चलकर
सोच + कर = सोचकर
लिख + कर = लिखकर
पढ़ + कर = पढ़कर
Tags: #kriya #kriya ki paribhasha #kriya ke bhed #kriya ke udahran #kriya-dhatu #kriya ke roop #dhatu ke roop #kriya kise kehte hain? #kriya kitne prakar ki hoti hain # kriya ke prakar #kriya ke bhed in Hindi #kriya ke upbhed #kriya ke naam #kriya shabd #kriya ki paribhasha Hindi mein #kriya ke examples #kriya in Hindi Vyakaran #kriya in Hindi.
0 Comments:
Post a Comment