अलंकार - Alankar in Hindi
अलंकार – अलंकार शब्द का अर्थ है गहना, आभूषण या जेवर।
परिभाषा - जिस प्रकार नारी आभूषणों को धारण कर के अपने आप को और ज्यादा सुन्दर बनाती हैं । उसी तरह कविगण अलंकार का उपयोग कर के अपने काव्य अथवा भाषा को भी सुन्दर बनाते हैं इसे ही अलंकार कहते हैं ।
नीचे
उदाहरण के लिए कुछ
काव्य पंक्तियाँ दी गयी हैं
–
१)
कोमल कलाप कोकिल कमनीय कूकती थी ।
२)
तीन बेर खाती थी, वे तीन बेर
खाती हैं ।
इन पंक्तियों में शब्दों के चमत्कार का पूर्ण प्रयोग करके अभिव्यक्ति को सुन्दर बनाया गया हैं ।
पहले
काव्य पंक्ति में ‘क’ वर्ण अनेक बार आया हैं जिससे
भाषा में चमत्कार उत्पन्न हुआ हैं ।
दूसरे
काव्य पंक्ति में ‘तीन बेर’ शब्द का दो बार
प्रयोग किया हैं परन्तु दोनों का अर्थ अलग
अलग हैं ।
पहले
‘तीन बेर’ का अर्थ हैं
– ‘तीन बार’
(three times) जबकि दूसरे ‘तीन बेर’ का अर्थ हैं
– ‘तीन बेरों (फल)’ के लिए किया
गया हैं । एक ही
शब्द को दो बार
लिख कर पंक्ति कि
और सुन्दरता बढाई गयी हैं ।
अलंकार के भेद - Kinds of Alankar / Types of Alankar
काव्य
के शब्द एवं अर्थ के आधार पर
अलंकार के 2 प्रमुख भेद होते है।
1. शब्दालंकार (Shabd Alankar)
जब किसी काव्य में शब्दों के प्रयोग से कविता में एक प्रकार का विशेष सौंदर्य और चमत्कार उत्पन्न हो, तो वहां शब्दालंकार होता है।
जैसे-
माला
फेरत जुग भया , फिरा न मन का
फेर।
कर का मनका डारि दे , मन का मनका फेर।
स्पष्टीकरण: यहाँ
इस उदाहरण में मनका को ( मनका – माला का दाना , मनका
– हृदय का) के लिए प्रयोग
किया गया है। इस प्रकार मनका
के प्रयोग से काव्य में
सौंदर्य और चमत्कार उत्पन्न
हुआ है। यदि मनका के स्थान पर
मूल शब्दों "माला का दाना" तथा "हृदय
का" का प्रयोग किया
जाए तो काव्य
का पूरा चमत्कार समाप्त हो जाएगा। अतः
यह अलंकार शब्दालंकार है।
शब्दालंकार के भेद:
१. अनुप्रास अलंकार
अनुप्रास अलंकार – जब किसी कविता की पंक्ति में एक ही वर्ण बार बार आए तो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं ।
उदाहरण –
‘तरनि
– तनुजा तट तमाल तरुवर
बहु छाए ।’
इसमें
‘त’
वर्ण ‘अनुप्रास अलंकार’ हैं ।
रघुपति राघव राजा राम ।
यहाँ ‘र’ वर्ण बार-बार आया है, अतः इसमें ‘र’ वर्ण ‘अनुप्रास अलंकार’ हैं ।
२. यमक अलंकार
यमक अलंकार - जब किसी कविता
की पंक्ति में शब्दांश या शब्द बार
– बार आए और प्रत्येक
का अर्थ अलग हो, तो उसे ‘यमक
अलंकार’ कहते
हैं । उदाहरण –
‘कहै
कवि बेनी – बेनी ब्याल की चुराई लीनी।’
स्पष्टीकरण: यहाँ इस पंक्ति में 'बेनी' शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। यहाँ इस पंक्ति में पहली बार प्रयुक्त शब्द 'बेनी' एक कवि का नाम है, और दूसरी बार प्रयुक्त शब्द 'बेनी' का अर्थ है 'चोटी' है। अतः इस पंक्ति में ‘बेनी’ ‘यमक अलंकार’ है।
‘कनक कनक ते सौं गुनी
मादकता अधिकाय।’
स्पष्टीकरण: यहाँ पर इस पंक्ति में कनक शब्द के दो अर्थ हैं धतूरा और सोना। इस पंक्ति में
‘कनक’ ‘यमक
अलंकार’ है।
३. श्लेश अलंकार
श्लेष अलंकार – ‘श्लेष’ शब्द का शाब्दिक अर्थ
है – ‘चिपका हुआ’ ।
जब
एक शब्द एक के बार
– बार होने पर भी एक
से अधिक अर्थों को बतलाता हैं
तो उसे ‘श्लेष अलंकार’ कहते हैं ।
उदाहरण
– रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून ।
पानी
गए न उबरे, मोती,
मानुस, चून । ।
स्पष्टीकरण: यहाँ
‘पानी’ का
अर्थ क्रमशः चमक, सम्मान तथा जल हैं ।
यही ‘श्लेष अलंकार’ हैं ।
यमक और श्लेष में अंतर –
यमक अलंकार में किसी शब्द का एक से
अधिक बार प्रयोग किया जाता है तथा उनके
अर्थ में भिन्नता पाई जाती है परंतु श्लेष
अलंकार में शब्द एक ही बार
आता हैं , उसके अर्थ एक से अधिक
होते है ।
उदाहरण
–
‘काली घटा का घमंड घटा’ – इस
काव्य पंक्ति में ‘घटा’ शब्द दो बार आया
है तथा दोनों के अर्थ अलग
- अलग हैं । पहले ‘घटा’ का
अर्थ बादलों में घिरने वाली घटा जबकि दूसरे ‘घटा’ का अर्थ है
– ‘घटना’ ।
यह यमक अलंकार का उदाहरण है
।
‘मंगन
को देखि पट डेट बार
– बार है’-
इस पंक्ति में ‘पट’ शब्द एक ही बार
आया हुआ है पर इसके
दो अर्थ है – ‘वस्त्र’ और ‘किवाड़’ । यह पंक्ति
श्लेष अलंकार का उदाहरण है
।
2. अर्थालंकार – (Arth Alankar)
जब
किसी काव्य में शब्दों के अर्थ के
प्रयोग से कविता में
एक प्रकार का विशेष सौंदर्य
और चमत्कार उत्पन्न हो, तो वहां अर्थालंकार
होता है।
जैसे-
“उसका
मुख मानो चन्द्रमा है।”
यहाँ
इस उदाहरण में मुख मानो चन्द्रमा के प्रयोग से
काव्य में सौंदर्य और चमत्कार उत्पन्न
हुआ है। अतः यह अलंकार अर्थालंकार
है।
अर्थालंकार के भेद:
१. उपमा अलंकार
उपमा अलंकार – ‘उपमा’ का अर्थ हैं
– समानता ।
जब
किसी रचना में किसी एक व्यक्ति या
वस्तु की तुलना दूसरे
व्यक्ति या वस्तु से
की जाती है , उसी को उपमा अलंकार
कहते हैं ।
उदाहरण
–
हाय फूल - सी बच्ची हुई
रख की ढेरी ।
स्पष्टीकरण: इस
पंक्ति में ‘बच्ची’ की तुलना ‘फूल’ से
की गयी है ।
हरि पद कोमल कमल
से ।
स्पष्टीकरण: इस
पंक्ति में ‘हरि पद’
(भगवान के चरण) की
तुलना ‘कमल’ से की गयी
है ।
दोनों
पंक्तियों में उपमा अलंकार है ।
२. रूपक अलंकार
रूपक अलंकार – जब किसी रचना
में किसी वस्तु की दूसरी वस्तु
से ऐसी समानता या फिर तुलना
की जाती हैं कि उनमे अभेद
(एकरूपता) स्थापित हो जाता है
अर्थात एक दूसरी वस्तु
बन जाती है, वहाँ रूपक अलंकार होता हैं ।
उदाहरण –
‘चरण कमल बन्दौं हरिराई ।’
स्पष्टीकरण: इस
पंक्ति में ‘चरण’ एवं ‘कमल’ में अभेद समानता हैं ।
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है ।
स्पष्टीकरण: इस
पंक्ति में ‘गुरु’ की ‘कुम्हार’ से तथा ‘शिष्य’ की
‘कुंभ’ से
ऐसी समानता की गयी है
कि दोनों में अभेद स्थापित हो गया हैं
।
मैया में तो चन्द्र खिलौना
लैहों ।
स्पष्टीकरण: इस
पंक्ति में चन्द्र (चाँद) और ‘खिलौना’ में अभेद दिखाया गया हैं ।
तीनों काव्य पंक्तियों में रूपक अलंकार हैं .
उपमा और रूपक अलंकार में अंतर –
उपमा तथा रूपक दोनों अलंकारों में किसी व्यक्ति या वस्तु की
दूसरे व्यक्ति या वस्तु से
समानता दिखाई जाती हैं परन्तु दोनों अलंकारों में अंतर है –
उपमा
में दो व्यक्तियों या
वस्तुओं की दूसरे व्यक्ति
या वस्तु से तुलना की
जाती है जबकि रूपक
में दो व्यक्तियों या
फिर वस्तुओं को एक बना
दिया जाता है ।
उदाहरण
–
यह देखिये अरविंद
– से कैसे सो रहे ।
माया दीपक नर पतंग भ्रमि
– भ्रमि इवै पंडत ।
स्पष्टीकरण: प्रथम
पंक्ति में शिशुवृन्द की तुलना अरविन्द
(कमल) से की गयी
है । इस पंक्ति
में उपमा अलंकार का प्रयोग किया
गया है जबकि दूसरी
पंक्ति में ‘माया’ को ‘दीपक’ तथा ‘नर’ को ‘पतंग’ बना दिया गया है । अतः
यहाँ रूपक अलंकार हैं ।
३. उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार - जब
किसी रचना में उपमेय में उपमान से भिन्नता होते
हुए भी उपमेय की
उपमान के रूप में
व्यक्त की जाए वहां
उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इस प्रकार के
अलंकार में मनु , मनो , जनु , जानो , मानहु , जानहु, निश्चय, ज्यों आदि वाचक शब्दों का प्रायः प्रयोग
होता है।
जैसे
-
सोहत
ओढ़े पीत पट स्याम सलोने
गात। मनहुं नीलमनि सैल पर, आपत परयौ प्रभात।
स्पष्टीकरण: उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में पीले वस्त्र धारण किये हुए श्रीकृष्ण ऐसे शुशोभित हो रहे हैं जैसे (मानो ) सूर्य - प्रभात किरणे नीलमणि पर्वत पर पड़ रही हो, यहाँ पीताम्बर धारी कृष्ण (उपमेय) में प्रभात की धूप से शुशोभित नीलमणि पर्वत (उपमान) की मनोरम सम्भावना (कल्पना) की गई है। अतः इस रचना में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के तीन भेद होते हैं।
वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार, हेतूत्प्रेक्षा अलंकार और फलोत्प्रेक्षा अलंकार
i) वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार: जब किसी रचना में एक वस्तु में किसी दूसरी वस्तु की सम्भावना (कल्पना) की जाए अर्थात प्रस्तुत में अप्रस्तुत की सम्भावना की जाए तो वहाँ वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
जैसे-
सखि
सोहत गोपाल के, उर गुंजन की
माल।
बाहर
लसत मनो पिये, दावानल की ज्वाल।।
स्पष्टीकरण: यहाँ
प्रस्तुत 'गुंजन की माल' में
अप्रस्तुत 'ज्वाला'
की संभावना प्रकट की गई है।
अतः यहाँ वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार है।
ii) हेतृत्प्रेक्षा अलंकार: जब किसी रचना में किसी वास्तविक कारण में काल्पनिक कारण को मान लिया जाए अर्थात जो हेतु नहीं है उसे हेतु मान लिया जाए तो वहाँ हेतृत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
जैसे-
बार-बार उस भीषण राव
से
कंपती
धरणी देख विशेष,
मानों
नील व्योम उतरा हो
आलिंगन
के हेतु अशेष।
स्पष्टीकरण: यहाँ
जल के रूप में
आकाश के पृथ्वी के
आने का कारण पृथ्वी
को कांपना बताया गया है। अत: हेतूत्प्रेक्षा अलंकार है।
iii) फलोत्प्रेक्षा अलंकार: जब किसी रचना में अफल में फल की कल्पना अर्थात किसी वास्तविक फल के न होने पर भी उसे वास्तविक फल मान लिया जाता है तो वहाँ अलंकार होता है।
जैसे-
तब
मुख समता लेहन को जल सेवत
जन जात
स्पष्टीकरण: तुम्हारे
मुख की समन्ता पराप्त
करने हेतु मानो कमल पानी में खड़ा होकर तपस्या कर रहा है।
इस प्रकार अफल में फल को मान
लिया गया है। अतः
यहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार है।
४. भ्रांतिमान अलंकार
जब
किसी वस्तु को देख कर
उसी प्रकार की किसी अन्य
वस्तु में समानता के कारण भ्रम
की स्थिति उत्पन्न हो जाए, तो
वहां भ्रांतिमान अलंकार होता है।
जैसे-
ओस-बिन्दु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान।
स्पष्टीकरण: उपर्युक्त
काव्य रचना में हंसिनी को ओस की
बूंदों में मोती का भ्रम उत्पन्न हो रहा
है। अतःह यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।
५. सन्देह अलंकार
जब
दो वस्तुओं अथवा क्रियाओं में इतनी अधिक समानता हो कि उसमें
एक से अधिक वस्तुओं
के होने का संदेह उत्पन्न
हो जिससे यह संदेह अंत
तक बना रहे, दूसरे शब्दों में जब किसी वस्तु
को देख कर संदेह या
संयश (अनिश्चय) की स्थिति उत्पन्न
हो जाए और वहां निश्चय
न हो पाए तो
वहां सन्देह अलंकार होता है। इस प्रकार के
अलंकार में या,
अथवा, किधौ, किंवा, कि आदि वाचक
शब्द दिए रहते हैं।
जैसे-
सारी
बीच नारी है कि नारी
बीच सारी है।
कि
सारी ही की नारी
है कि नारी ही
की सारी है।।
स्पस्टीकरण:
जब द्र्पदी का चीयर हरण
हो रहा था और दुष्ट
दुःशासन सारी(साडी) को खींचते-खींचते
थक गया लेकिन सारी(साडी) खत्म न हुई। जिससे
यहाँ संदेह की स्थिति उत्पन्न
हुयी कि "सारी बीच नारी है कि नारी
बीच सारी है" अतः यह अलंकार सन्देह
अलंकार है।
६. अतिशयोक्ति अलंकार
जब
किसी व्यक्ति या वस्तु में
किसी बात को अत्यधिक बढ़ा
- चढ़ा कर वर्णन या
प्रशंशा किया जाए तो वहां अतिशयोक्ति
अलंकार होता है।
जैसे-
देख
लो साकेत नगरी है यही। स्वर्ग
से मिलने गगन में जा रही।।
स्पष्टीकरण:
यहाँ इस
उदाहरण में साकेत नगरी के ऊँचे भवन
का वर्णन आकाश की ऊँचाई को
छूते हुए बताया गया है। अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।
७. मानवीकरण अलंकार
"जब
किसी निर्जीव वस्तु को सजीव के
रूप में वर्णन किया जाए तो वहाँ मानवीकरण
अलंकार होता है।"
जैसे-
अँखियाँ
हरि दरसन की भूखी।
स्पष्टीकरण: उपर्युक्त पंक्ति में यह वर्णन किया गया है कि भूखा रहना मानव का गुण है। परन्तु यहाँ अँखियाँ (आँखें) भूखी हैं। अर्थात मानवीव गुण का आरोपण आँखों पर कर दिया गया है। अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि बोलने, हंसने तथा मुस्कराने कि क्रियाएं केवल मनुष्य या जानदार द्वारा ही की जा सकती हैं। जब ऐसी भावनाएं किसी निर्जीव के लिए बोली या कही जाए तो यह मानवीकरण अलंकार होता है।
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